मेरा और समुद्र का, इक जैसा इतिहास
मेरा और समुद्र का, इक जैसा इतिहास जल ही जल है कंठ तक, फिर भी बुझे न प्यास बँधे हुए जिस पर कई, रँगों के रूमाल हरी-भरी है आज भी, यादों की वह डाल ताज़ा हैं सब आज भी, सूखे हुए ग़ुलाब शब्द-शब्द महका रही, सुधियों रची ग़ुलाब क्या पहले कुछ कम … Continue reading मेरा और समुद्र का, इक जैसा इतिहास
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